Wednesday, October 13, 2010

दर्द बेहिसाब..

मुकम्मल  न  हुआ  वो  जिसकी  इस  नादान  दिल  को  तलाश  थी ..
खोई  हर  वो  ख़ुशी  जो  कभी  मेरे  बहुत  ही  पास  थी .
दर्द तो  कुछ  इस  लिए  बेहिसाब  हें  जनाब  क्यूंकि ,
मिली  थी  ख़ुशी तब , जब  मुझे  उसकी  न  कोई  आस  थी ...

साज़ भरा संगीत...

आँखों  पे  तेरे  चेहरे  की  चांदनी  का  असर  है ,
जिसका  छाया  मुझे  पे  नशा  चारों  पहर  है .
जब  मिलते  हैं  सुर  और  ताल  तो  बनता  संगीत  है
क्यूँ  इस  रस  भरे  साज़ से  तू  बेखबर  है?
इंतज़ार  करता  हूँ  जब  तुझसे  जी  भर  के  दिल  की  बातें  होंगीं ,
वक़्त  की  होगी  न  परवाह , दरमियां  दिन  और  न कोई  रातें होंगी.

Dil Ka Shahar..

ये  दिल  का  शहर  तो  तुमसे  रोशन  हुआ  करता  था  कभी , अब  तो  आंसू  भी  कम  पड़ते  हैं  इसे  सींचने  के  लिए ..

नैनों के  सागर  से  उछल  के  बहती  हुई  लहरें  गालों  पे  दिखाई  देती  हैं ,
पलकें  मजबूर  हुईं  तो  क्या  ओट  देने  की  कोशिश  तो  की ..

Khushiyon Ki Dukaan


जेब में आंसू हथेली पे मुस्कान,
बस इतनी सी होगी मेरी पहचान,
आशाओं की खिड़की मेहनत की दीवार,
कुछ खिलखिलाहटें तो कुछ तकरार
दुआओं की इक छत होगी,
उम्मीदों पे खड़ा होगा मेरा मकान,
किलियों पे अरमानो की तस्वीरें होगीं,
कोने पे पड़ी मजबूर जंजीरे होगीं
ख़ुशी की हुई जो दरकार कभी,
पास में ही होगी खुशियों की दुकान,
जेब में आंसू हथेली पे मुस्कान ,
बस इतनी सी होगी मेरी पहचान!
~ वैभव

10/13/2010